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Kathua : अब पाकिस्तान नहीं जाएगा रावी का पानी, इससे घाटी में होगी सिंचाई; 29 साल बाद शाहपुरकंडी परियोजना पूरी

शाहपुरकंडी बांध परियोजना का काम आखिरकार 29 साल बाद पूरा हो गया। बुधवार रात से झील में जल भंडारण का काम शुरू कर दिया गया है। अब पाकिस्तान को जाने वाला रावी नदी का 12 हजार क्यूसेक (प्रति वर्ष) पानी बंद हो जाएगा। इस पानी से अब जम्मू-कश्मीर और पंजाब की 37 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इसमें से 32 हजार हेक्टेयर जम्मू-कश्मीर में ही है। इससे कठुआ-सांबा के कंडी क्षेत्र के किसानों को सबसे अधिक फायदा मिलेगा। 

बता दें कि रणजीत सागर बांध परियोजना से पहले दिन 2300 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। 14 जनवरी की रात 10 बजे से रणजीत सागर बांध परियोजना में बिजली उत्पादन रोका गया था, क्योंकि, शाहपुरकंडी बांध के दस सेल्यूस अंडर वाटर वॉल्ब बंद करने की प्रक्रिया को गत दिवस पूरी कर शाहपुरकंडी बांध की झील में पानी भरने का कार्य शुरू कर दिया गया है। पहली रात बैराज बांध की झील में तीन मीटर पानी आया है। बता दें शाहपुरकंडी बांध पर रावी कैनाल का कुछ काम बाकी है। झील में पानी भरने तक नहर का काम पूरा कर लिया जाएगा। 

इसके बाद कठुआ और सांबा को रोजाना 1150 क्यूसेक पानी मिलेगा, इससे दोनों जिलों में 32173 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। परियोजना पर करीब 2,793 करोड़ रुपये लागत आई है। इससे 206 मेगावाट बिजली उत्पादन का भी लक्ष्य है। अक्तूबर 2025 तक पावर हाऊस बनकर तैयार होंगे और जम्मू-कश्मीर को अपने हिस्से की बिजली भी मिल पाएगी।

कृत्रिम झील से मिलेगा खेतों को पानी

शाहपुरकंडी बांध को रणजीत सागर डैम से 11 किलोमीटर डाउनस्ट्रीम और माधोपुर हाइडल से आठ किमी. अपस्ट्रीम पर बनाया गया है। अब इस पानी को रोका जाना है, बांध बनकर तैयार है। भंडारण का कार्य शुरू होने के बाद यहां एक कृत्रिम झील आकार ले लेगी और उसके बाद इससे रावी-तवी नहर से खेतों तक यह पानी पहुंचाया जाएगा। इससे कठुआ, हीरानगर व सांबा की बंजर हो रही जमीन सिंचित होगी और खेतों में भी हरियाली आएगी।

साल दर साल बढ़ी लागत, पीएम के हस्तक्षेप से दूर हुई थी अड़चनें

दरअसल स्कीम 1964 में तैयार कर भारत सरकार के सुपुर्द की गई थी। जनवरी 1979 में थीन डैम (अब रणजीत सागर डैम) और पावर प्लांट स्कीम के बारे में पंजाब व जम्मू-कश्मीर के बीच समझौता हुआ था। इसके बाद योजना को भारत सरकार के योजना आयोग की ओर से अप्रैल 1982 में औपचारिक तौर पर स्वीकृति दी गई। परियोजना का नींव पत्थर 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने रखा था। इसके बाद काम रुक गया, 2013 में फिर से बांध का निर्माण शुरू हुआ। 

तब इस प्रोजेक्ट की लागत 2300 करोड़ रुपये तय हुई थी। लेकिन 2014 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने सिंचाई के पानी में हिस्सेदारी, डैम के डिजाइन और जमीनों के मुआवजे को लेकर निर्माण रुकवा दिया। लगातार 50 महीने तक इसका निर्माण कार्य बंद रहा। 2014 में केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष रखा। पीएम मोदी के हस्तक्षेप के बाद सभी विवाद सुलझे और आठ सितंबर, 2018 में ‘शाहपुरकंडी परियोजना’ को एक बार फिर शुरू किया गया। यह प्रोजेक्ट रावी नदी पर बने 600 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाले रणजीत सागर बांध का पूरक है। इसका कुल जल भंडार क्षेत्र 952.26 हेक्टेयर है, जिसमें पंजाब में भंडार क्षेत्र 333.91 हेक्टेयर, जबकि जम्मू-कश्मीर में 618.35 हेक्टेयर है। शाहपुरकंडी हाइड्रो प्रोजेक्ट से 2025 के अंत तक बिजली उत्पादन शुरू होने की संभावना है।

रावी कैनाल का 85 फीसदी काम पूरा हो चुका है। हेड रेगुलेटर और एक पुल का काम बाकी है, जो तेजी से चल रहा है। अगर पहले दिन की तरह बहाव जारी रहा, पहाड़ों पर जरूरत के मुताबिक बारिश होती रही तो भी रावी कैनाल को फीड करने वाली झील का लेवल पूरा होने में कम से कम 90 दिन लगेंगे। इस समय के दौरान बकाया काम पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद रावी कैनाल से कठुआ और सांबा के लोगों को भरपूर पानी मिलने लगेगा। खासकर कंडी क्षेत्र के लोगों की जरूरत पूरी होगी।  अजीत कुमार, कार्यकारी अभियंता, रावी-तवी सिंचाई विभाग, कठुआ

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