कानपुर नगर निगम का खुलासा, कुर्सी के खेल निराले मेरे भइया पार्ट-3
निजाम बदलता रहा नहीं बदली बाबूओं की कुर्सी, नगर आयुक्त बदलते रहे पर बाबू वहीं के वहीं
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो खबर ली है
पुलिन तिवारी ,कानपुर। आजकल नगर निगम में हंगामा सा बरपा है। जिसको देखो पब्लिक रूट की वेबसाइट पर ही टहल रहा है। वजह केवल इनती सी है कि इस पर Publicroute.co.in ने चार चरणों में भीतर की कुछ खबरों को प्रकाशित किया। अभी तो इन्हें पीआर न्यूज़ इंडिया के जियो चैनल नम्बर 2062 पर डाला भर गया है। अभी तो और भी मसाला बाकी है।
नगर निगम का एक बहुचर्चित नाम है-संजय कटियार। इस नाम से सारे अफसर सारे बाबू कांपते हैं। वजह साहब को पास तकरीबन 15 साल से महाभारत के संजय जैसी दिव्य दृष्टि मिली हुई है। मतलब साहब इतने लंबे समय से नगर आयुक्तों के पीए के पद पर डटे हैं। इस काल खंड में जाने कितने नगर आयुक्त आए। पर सबने संजय कटियार को ही अपना व्यक्तिगत सहायक बनाना ठीक समझा। साहब की रंगबाजी है इतनी भौकाली। इसी भौकाल का फायदा उठा कर उन्होंने क्या-क्या कर डाला यह जानने के आपको थोड़ा सा इंतजार करना होगा। और हां नाम भी अभी कुछ और खुलने हैं।
निजाम बदलता रहा नहीं बदली बाबूओं की कुर्सी, नगर आयुक्त बदलते रहे पर बाबू वहीं के वहीं
देश में मोदी लहर का भरपूर लाभ कानपुर की मेयर प्रमिला पांडेय ने भी जमकर उठाया है…उन्हें रिवॉल्वर दीदी और रिवॉल्वर अम्मा के नाम से भी जाना जाता है… प्रमिला पांडे एक बार सोशल मीडिया पर अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर के साथ फोटो पब्लिश की….वह भी मंदिर में बैठकर तभी से उनका यह नाम पड़ गया… ऐसा कोई आम आदमी करे तो पुलिस तुरंत उसे सलाखों के पीछे डाल देती है… पर वह ठहरी कानपुर की महापौर उन्हें कौन छुएगा…FIR के बाद मामला टांय टांय फिस्स हो गया….सुनने में तो यहां तक आता है कि रिवाल्वर दीदी को सापों से भी डर नहीं लगता…फिर अफसरों की बिसात क्या…उनके सामने तो वह चुनी हुई जनप्रतिनिधि हैं…वो भी ऐसी वैसी नहीं कानपुर शहर की प्रथम नागरिक… उनकी मर्जी के बिना कोई पत्ता भी हिले तो वह नगर निगम की बैठक में ही अफसर के मुंह पर फाइल मारने से भी गुरेज नहीं करतीं…उन्हीं के चहेते बाबू 15-15 , 20–20 साल से अपनी कुर्सी से हिल भी नहीं रहे हैं…अब वो जिसको चाहेंगी नाला सफाई का हो या फुटपाथ बनाने का, मार्ग प्रकाश से लेकर आडिट विभाग तक में उनके खास लोग है…रिवाल्वर दीदी जिसे चाहेंगी टेंडर तो उसे ही मिलेगा… अब समझाते हैं कि कैसे उन्होंने वसूलीबाज और भू माफिया अवनीश से ज्यादा संपत्ति बना ली होगी…गणित एक दम साफ है…अवनीश को एक बार ही नाला सफाई का टेंडर मिला तो उसने इसी काम से डेढ़ करोड़ रुपये बना लिए….फिर रिवाल्वर दीदी तो कई साल से कानपुर की मेयर हैं…उन्होंने कितनी कमाई की होगी इसका अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं हैं…वहीं अफसर हैं कि परेशान हैं कि व्यवस्था संभालें भी तो कैसे…दबी छुपी तो यह खबर भी आ रही है कि शिव शरणप्पा जीएन के बाद शहर आए नए नगर आयुक्त भी यहां से तबादले के लिए जुगाड़ बैठालने में लगे हैं…..
उनकी राजनीतिक शुरूआत 1987 में आरएसएस के साथ शुरू हुई थी… दो सालों तक आरएसएस के साथ काम करने के बाद वो बीजेपी में शामिल हो गईं….अब जब रिवाल्वर दीदी को
कानपुर नगर निगम में चल रहा है ..कुर्सी से चिपकने का खेल… पर अवनीश गैंग जैसे लोगों के संरक्षक बने … भारत समाचार चैनल के.. न तो मालिक ब्रजेश मिश्रा को यह खेल दिखाई दे रहा है… न स्टेट हेड वीरेंद्र सिंह को… उन्हें तो सिर्फ MSME के ट्रांसफर के लिए.. छटपटा रहे अफसरों का दर्द दिखता है… उसके लिए वह योगी सरकार के मंत्रियों पर भी आरोप लगाने से नहीं चूकते..
खैर ..आज का मुद्दा है.. कानपुर नगर निगम …
आपको बताते हैं इस खेल के बारे में…सबसे पहले मुख्य लेखाधिकारी के कार्यालय की कहानी… यहां वरिष्ठ लिपिक की कुर्सी पर सालों से संजय बाजपाई जमे हुए हैं… छह साल से यानी तीसरे नगर आयुक्त के आ जाने के बाद भी भाई साहब की कुर्सी कोई डिगा नहीं पाया।
अधिकारी सुस्त और बाबू मस्त की नीति के ही तहत लेखा विभाग के अधिकारी खूब जमकर खेल खेल रहे हैं…. दूसरा उदाहरण हैं फंड विभाग के बाबू केके श्रीवास्तव का। … पांच साल से भी ज्यादा समय से फेवीकोल लगा कर कुर्सी से चिपके …फंड बाबू भी चिपकूपन की मिसाल बने बैठे हैं।
अब चपरासी.. इंद्रसिंह को ही लीजिए… उन्होंने तो बीस साल तक रह कर विभाग को दीमक की तरह खोखला कर दिया…अब आलम यह है कि लेखा विभाग में वह भले ही क्लर्क की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाया हो पर रुतबा बड़े बड़े अफसर से भी कम नहीं है।
अब देखना यह है कि “शिवशरणप्पा जी एन” के जाने के बाद आए नये नगर आयुक्त सुधीर कुमार क्या इस तिलिस्म को तोड़ पाएंगे या फिर वह भी हिस्सा बन जायेंगे कुर्सी से चिपको खेल का…
आपको जानकर ताज्जुब होगा…. कि नगर निगम में कुर्सी से चिपकने का जो खेल चल रहा है वह 5—-6 साल से नहीं बल्कि दशकों से खेला जा रहा है….कोई 15 साल से….तो कोई 20 साल से…अब वरिष्ठ लिपिक अजय पांडेय को ही लीजिए….इनकी सेटिंग गेटिंग इतनी तगड़ी है कि सिविल विभाग से इनको हटाना बड़े से बड़े अफसरों के भी हाथ में नहीं है…यही हाल है सरदार भुपिंदर सिंह का…ये सज्जन भी सिविल विभाग नहीं छोड़ रहे हैं…गर कोई अफसर ट्रांसफर कर भी दे तो यह उसको रद कराने की भी हिम्मत रखते हैं….अब कमायू विभाग.. यानी आडिट विभाग की भी बात कर लेते हैं….वीरू सोनकर इस विभाग को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हैं….मतलब दो दो दशकों के बाद भी वही कुर्सी वही मेज….इन लोगों ने तो राजनेताओं के कुर्सी प्रेम को भी पीछे छोड़ दिया है…कहानी यहीं नहीं खत्म होती निलंबित कर्मचारी भी अपनी अपनी कुर्सियों से इतनी मोहब्बत करते हैं जितनी डर फिल्म में शाहरुख खान क क क किरन से नहीं करते थे… जी हां ब्रजेश कुमार को ही लीजेए पुराने जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग में हेराफेरी के लिए इन्हें नगर आयुक्त ने खुद पकड़ा…निलंबन की कार्रवाई भी हुई पर डटे हैं…नहीं छोड़ते अपनी कुर्सी…अब नगर निगम विभाग में नगर आयुक्त से बड़ा पद तो किसी के पास है नहीं… फिर कौन हटाएगा इन्हें…शायद बुलडोजर बाबा ही कुछ कर सकें तो बात अगल है…