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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खुद को देश के सभी नागरिकों का ‘संरक्षक’ बताया। अदालत ने कई मामलों में जांच एजेंसियों की ओर से मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को तलब करने पर स्वत: संज्ञान लिया और अपना फैसला सुरक्षित रखा।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान पीठ ने टिप्पणी की, “हम देश के सभी नागरिकों के संरक्षक हैं।” पीठ ने मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि न्याय प्रशासन के एक हिस्से के रूप में वकीलों को संरक्षण दिया जाना चाहिए। किसी वकील के किसी अपराध में शामिल होने के मुद्दे पर, पीठ ने कहा कि उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ या उन्हें गढ़ने के संबंध में सलाह देने की उनकी सामान्य कार्यप्रणाली से कोई भी भटकाव उन्हें मिली प्रतिरक्षा को समाप्त कर देगा।
मेहता ने कहा कि जांच एजेंसियों को कभी भी किसी वकील को पेशेवर राय देने के लिए नहीं बुलाना चाहिए। मामले में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मुद्दा न्याय तक पहुंच का है। उन्होंने कहा कि हाल ही में एक वकील के खिलाफ इस आधार पर एफआईआर दर्ज की गई कि उनके मुवक्किल ने कहा था कि उन्होंने उन्हें नोटरीकृत हलफनामा देने के लिए अधिकृत नहीं किया था। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह वकीलों के दो वर्ग नहीं बना सकती।
मेहता ने सुप्रीम कोर्ट ने आग्रह किया कि वह सभी के लिए कानून बनाए, लेकिन देश के परिदृश्य को भी ध्यान में रखे। पीठ ने कहा, “आदेश सुरक्षित करें।” अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पहले कहा था कि उन्होंने इस मामले में विभिन्न बार निकायों की ओर से दायर सबमिशन का अध्ययन किया है और वे एक लिखित नोट दाखिल करेंगे। पीठ ने वकीलों से एक सप्ताह के भीतर अपने नोट्स दाखिल करने को कहा।
29 जुलाई को शीर्ष अदालत ने कहा था कि महज वकील के तौर पर काम करने वाले व्यक्ति को जांच एजेंसियों की ओर से मुवक्किल को कानूनी राय देने के लिए तलब नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, अदालत ने कहा कि यदि कोई वकील अपराध में मुवक्किल की सहायता कर रहा है, तो उसे तलब किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और अधिवक्ता विपिन नायर ने किया है और उन्होंने इस मामले में दलीलें पेश की हैं।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय “सभी सीमाएं पार कर रहा है” और एजेंसी की जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए वकीलों को बुलाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। अदालत ने इस बारे में गाइडलाइंस भी मांगे थे।
यह स्वतः संज्ञान मामला ईडी द्वारा वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किये जाने के बाद सामने आया है। 20 जून को, ईडी ने कहा कि उसने अपने जांच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने मुवक्किलों के खिलाफ चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच में किसी भी वकील को समन जारी न करें। एजेंसी ने कहा कि इस नियम के अपवाद का इस्तेमाल एजेंसी के निदेशक की “अनुमति” के बाद ही किया जा सकता है।धन शोधन अपराधों से निपटने के लिए कार्यरत ईडी ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के मार्गदर्शन के लिए एक परिपत्र जारी किया है। इसमें कहा गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 का उल्लंघन करने वाले किसी भी वकील को “कोई समन” जारी नहीं किया जाना चाहिए।
एससीबीए और एससीएओआरए ने अधिवक्ताओं को सम्मन जारी करने की निंदा की और इस कदम को एक ‘परेशान करने वाली प्रवृत्ति’ बताया। उनका मानना है कि ऐसे मामलों ने कानूनी पेशे की बुनियाद पर प्रहार किया है। बार निकायों ने मुख्य न्यायाधीश से मामले का स्वतः संज्ञान लेने की अपील की थी।
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