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हिमाचल प्रदेश: ट्रायल कोर्ट से दोष मुक्त होने के साढ़े तीन साल बाद नौ कांग्रेस नेताओं पर फिर बैठी जांच,

पूर्व भाजपा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के मामले में ट्रायल कोर्ट (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) से दोषमुक्त कांग्रेस नेताओं समेत नौ कार्यकर्ताओं के खिलाफ दोबारा जांच होगी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण गर्ग ने राज्य की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए मामले को वापस भेजा है। आदेश दिए गए हैं कि आरोप पत्र की विषय-वस्तु और पुलिस रिपोर्ट में दर्ज सामग्री की जांच का समुचित अवलोकन करने के बाद इस मुद्दे पर नए सिरे से विचार हो। पक्षकारों को 22 अगस्त 2025 को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के निर्देश दिए हैं।

10 नवंबर, 2021 को ट्रायल कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 (1)(ए)(आई) के आदेश के मद्देनजर उक्त मामले की कार्यवाही रोक दी थी और आरोपियों को सभी कथित अपराधों से आरोप मुक्त कर दिया था। मामला 16 अप्रैल, 2019 को सदर थाना क्षेत्र का है। पुलिस टीम कांग्रेस भवन के पास कार्ट रोड पर ड्यूटी पर थी। आरोप लगे थे कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं यशवंत छाजटा, आकाश सैनी, अरुण शर्मा, हरि कृष्ण हिमराल, दिनेश चोपड़ा, इंद्रजीत सिंह, अमित कोहली, जैनब चंदेल, गीता नेगी समेत 80-90 अन्य लोगों ने एक राजनीतिक रैली में भाजपा नेता सतपाल सत्ती के खिलाफ नारे लगाए और उनके पुतले को आग लगा दी।

इसके बाद आईपीसी की धारा 143, 188 और 336 के तहत आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। इसी दौरान ट्रायल कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता में अपेक्षित अनुमति और उचित शिकायत के अभाव में अपराधों का संज्ञान लेने से इन्कार कर आरोपियों को बरी किया था। उधर, अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने कार्यवाही को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 258 के प्रावधानों को लागू करने और शिमला के जिला मजिस्ट्रेट की ओर से लिखित शिकायत न मिलने के आधार पर आरोपियों को आईपीसी की धारा 143 और 336 के तहत अपराधों से मुक्त करने में एक महत्वपूर्ण अनियमितता और स्पष्ट त्रुटि की है।

सत्र न्यायालय ने इस याचिका के समर्थन में सर्वोच्च न्यायालय केसी मुनियप्पन एवं अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य, एआईआर 2010 एससी 3718 में दिए गए आधिकारिक निर्णय पर भरोसा किया है। इसमें माना गया है कि आईपीसी की धारा 188 के तहत आरोपों को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195(1)(ए)(आई) की अनिवार्य आवश्यकता का पालन न करने के आधार पर रद्द करना, किसी भी तरह से, उसी लेनदेन से उत्पन्न अन्य मूल अपराधों के संबंध में अभियोजन पक्ष के मामले की स्थिरता या स्वीकार्यता को प्रभावित नहीं करेगा।

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