HP Politics: सुक्खू सरकार ने भाजपा के चक्रव्यूह का तोड़ निकाला, बगावत के शोलों को शांत करना चुनौती

भाजपा के चक्रव्यूह का तो कांग्रेस पार्टी और सुक्खू सरकार ने फिलहाल तोड़ निकाल लिया, पर अपने ही घर में भड़की आग शांत करना बड़ी चुनौती होगा। आगे सरकार को किसी से कोई खतरा नहीं होगा…अभी इस दावे का कोई ठोस आधार नहीं है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के विरोधी अब अंदरखाते चुप बैठे रहेंगे या उनके हथियार अब कुंद हो गए हैं, यह अभी नहीं कहा जा सकता।
क्या वे सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की बात इस स्थिति में फिर कभी नहीं करेंगे, जबकि केंद्रीय नेता जयराम रमेश ने भी एक बयान जारी किया है कि कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में जनमत के सम्मान के लिए कड़े फैसले लेने से नहीं हिचकेगी।
मुख्यमंत्री सुक्खू की पसंद और नापसंद एकदम स्पष्ट है, इसलिए वह पिछले एक साल में घाटा-नफा न देखते हुए विरोधियों के सामने तनकर खड़े रहे। वीरभद्र सरकार में प्रभावशाली मंत्री रहे विधायक सुधीर शर्मा और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल को हराकर चर्चा में आए राजेंद्र राणा मंत्री पद न मिलने के कारण पिछले कई महीनों से बगावती तेवर अपनाए थे। वे सुक्खू सरकार को झटका देने की पटकथा लिखने लगे थे। इसके संकेत लगातार दे रहे थे।
सरकार इन दोनों नेताओं को हल्के में लेती रही। बीच-बीच में तेवर बदलते लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह की रणनीति भी समझ से परे ही रही, जिसे नादानी मानकर टाला जाता रहा, जिसका मवाद बुधवार सुबह फट पड़ा। इससे एक बार यह भी लगा कि इस सारे खेल के पीछे कहीं हाशिये पर जा रहे हॉली लॉज की शह तो नहीं। पर दोपहर तक यह साफ हो गया कि सब अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा और भावुकता की लड़ाई ही लड़ रहे हैं।
इसीलिए शायद सरकार पर आया एक बड़ा संकट टल भी गया और भाजपा का आॅपरेशन लोटस सिरे नहीं चढ़ पाया। छह बागी विधायकों में से एक ने तो मुख्यमंत्री से माफी भी मांग ली है, जो पिछली सरकारों में सुक्खू विरोधी खेमे में ही गिने जा रहे हैं। इसके मायने आने वाले दिनों में समझ में आ सकते हैं। सबसे हैरतअंगेज करने वाली बात यह है कि राज्य का खुफिया तंत्र भी घर में सुलग रही चिंगारी के खतरे को भांपने में पूरी तरह से असफल रहा और सरकार यह विश्वास किए रही कि सिस्टम के भीतर सबकुछ ठीकठाक है।