आजम खान की ‘महबूबा’ जिससे बेइंतहा मोहब्बत करते हैं ‘खान साहब’,

जानें कौन है आजम खान की ‘महबूबा’ जिससे बेइंतहा मोहब्बत करते हैं ‘खान साहब’, इन दो लोगों ने सपा नेता की लव स्टोरी का कर दिया द एंड, पढ़ें नेता जी के दोस्त की जिंदगी का सफरनामा
रामपुर। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान की मुश्किलें कम होने के बजाए आएदिन बढ़ती ही जा रही हैं। रामपुर सीट के लिए हुए उपचुनाव में उन्हें करारी शिकस्त उठानी पड़ी। आजम खान ने अपने करीबी आसिम रजा को शहर सीट से चुनाव के मैदान में उतारा। यहां बीजेपी के आकाश सक्सेना ने सपा उम्मीदवार को करीब 33 हजार वोटों से हराकर पूर्व मंत्री आजम खान की राजनीति को जमींदोज कर दिया। हार के बाद पूर्वमंत्री ने शासन-प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि, रामपुर उनकी महबूबा है और यहां की आवाम से वह बेइंतहा मोहब्बत करते हैं। अगर आर्मी की मौजूदगी में मतदान होता तो मेरे चाहने वाले खुलकर घर से निकलते और आसिम रजा विधायक चुने जाते।
कौन हैं आजम खान
आजम खान के रामपुर की राजनीति के आजम बनने की कहानी 1974 से शुरू होती है, जब वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे। उसी समय आपातकाल लगा और उनके कांग्रेस विरोधी रवैये के कारण उन्हें भी जेल भेज दिया गया। आजम खान उन खास लोगों में थे, जिन्हें पांच गुणा आठ फीट की ऐसी कोठरी में डाला गया था। आपातकाल के बाद जेल से छूटने पर आजम खान का कद तो बढ़ गया, लेकिन माली हालत खस्ता ही रही। उनके पिता मुमताज खान शहर में एक छोटा-सा टाइपिंग सेंटर चलाते थे। आज़म जेल से आते ही विधानसभा का चुनाव लड़ गए, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कांग्रेस के मंज़ूर अली खान से हार गए।
आजम खान का 45 साल का है राजनीतिक सफर
समाजवादी पार्टी के कददावर नेता और यूपी विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायक रहे आजम खां का लंबा राजनीतिक सफर रहा है। 45 साल के सियासी सफर के दौरान आजम खां ने कई बार उतार चढाव देखे। लेकिन, बीते तीन सालों में आजम खां की मुश्किलें इस कद्र बढती गईं कि 45 साल का राजनीतिक सफर थम सा गया। भड़काऊ भाषण मामले में कोर्ट ने 27 अक्टूबर को आजम खां को तीन साल की सजा सुनाई। 28 अक्टूबर को उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म कर सीट रिक्त घोषित कर दी गई। आजम खां रामपुर विधानसभा सीट से दसवीं बार चुनाव जीते थे। आजम खां की विधानसभा सदस्यता जाने के बाद अब दूसरी बार रामपुर सीट पर उपचुनाव हुआ और बीजेपी के आकाश सक्सेना विधायक चुने गए।
आजम खान ने 1977 में लड़ा था पहला चुनाव
सपा नेता आजम खां ने अपना सियासी सफर छात्र नेता के रूप में शुरू किया। वह जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत थे, तो वहां विद्यार्थी संघ के सचिव थे। 1976 में आजम खां जनता दल में शामिल हो गए। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1977 में लडा था, जिसमें उन्हें हार मिली थी। लेकिन, 1980 के चुनाव में जीत गए और पहली बार विधायक बने। 1996 को छोडकर आजम खां कभी चुनाव नहीं हारे। हालांकि, वह 1996 में कांग्रेस के अफरोज अली खां से चुनाव हार गए थे। तब उन्हें सपा की तरफ से राज्यसभा का सदस्य बना दिया था।
मुलायम सिंह के सबसे करीबी थे आजम खान
आजम खां को मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी नेताओं में से गिना जाता था। वे सपा के संस्थापक सदस्य भी हैं। मुलायम सिंह यादव और आजम खां की दोस्ती के किस्से आज भी सियासी गलियारों में सुनाए जाते हैं। सपा नेता आजम खां के भाषणों का अलग ही क्रेज था। एक जमाना था जब आजम खां के भाषणों को सुनने के लिए लोग दीवाने थे। लेकिन, उसी जुबान की वजह से आजम खां का लंबा राजनीतिक इतिहास मटियामेट हो गया। आजम खान अपनी बेवाकी के लिए जाने जाते हैं। आजम खान के भाषण काफी तीखे होते हैं और इसी के चलते उनकी विधानसभा की सदस्यता चली गई।
इस आईएएस अफसर के चलते गई विधायिकी
सपा नेता आजम खां की मुश्किलें 2019 से बढनी शुरू हो गईं थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी और वर्तमान में मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त आंजनेय कुमार सिंह समेत तमाम अधिकारियों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया था। जिसके बाद उनके खिलाफ भडकाऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इसी मामले में कोर्ट ने उन्हें तीन साल की कैद और छह हजार रूपये जुर्माना अदा करने की सजा सुनाई है। उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं और थानों में सौ से अधिक मुकदमे दर्ज हैं।
आकाश सक्सेना ने छीन ली सियासी जमीन
आजम खान को रामपुर में एक आईएएस अफसर तो दूसरे आकाश सक्सेना ने सीधी टक्कर दी। बीजेपी विधायक आकाश सक्सेना ने प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद आजम खान के पुराने मामले सामने लाए। फिर एक-एक कर आजम खान के खिलाफ मुकदमे दर्ज होने शुरू हो गए। आकाश सक्सेना ने आजम खान के करीबियों को अपने साथ मिलाया और सपा के कद्दावर नेता की रामपुर से सियासी जमीन को जमींदोज कर दिया। आजम खान कभी भी आकाश सक्सेना का नाम नहीं लेते। हलांकि, इशारों-इशारों में वह बीजेपी विधायक को अपना सबसे बड़ा सियासी दुश्मन करार देते हैं। उपुचनाव में मिली हार के बाद आजम खान ने कहा कि, वह टूटे नहीं। रामपुर उनकी महबूबा है और बीजेपी कभी उनकी मोहब्बत पर खलल नहीं डाल सकती। पुलिस के बल पर सत्ता छीनी जा सकती पर उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता।
नवाबों से सीधे टकराए आजम खान
नवाबी खानदान की राजनीति के उरूज के उस दौर में उन्हें चुनौती देने वाले बेहद मामूली खानदान के आजम खान ही थे, जो निचले तबके और मजदूरों में अपनी पैठ बनाते जा रहे थे। उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी और रामपुर लोकसभा में जहां मिकी मियां सफलता हासिल कर रहे थे। वहीं विधानसभा चुनावों में आजम भी जीतने लगे थे। आजम जैसे-जैसे ताकतवर होते गए, वैसे-वैसे रामपुर के नवाब खानदान की राजनीति पस्त होती गई। इस इलाके में सपा का असर बढ़ता चला गया। अब सत्ता में न होते हुए भी आजम खान रामपुर के आजम हैं, और उनका यही रसूख बीजेपी को अखर रहा है।