जिन्ना टावर को क्यों गिराने की हो रही मांग, कैसे पड़ा था नाम

जिन्ना टावर को हटाने की मांग
 
जिन्ना टावर को क्यू हो रही है गिराने की मांग, जानिए वजह
आंध्र प्रदेश

बहुत से लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि भारत के गुंटूर शहर के मशहूर कारोबारी केंद्र में पाकिस्तान के संस्थापक के नाम पर कोई स्मारक है. मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर बना यह टावर गुंटूर शहर के मुख्य आकर्षण केंद्रों में से एक है.अपने निर्माण के सात दशक बाद भी जिन्ना टावर सेंटर, गुंटूर में धार्मिक सद्भाव का एक प्रतीक बनकर खड़ा है. दिलचस्प बात यह है कि इस इलाक़े में रहने वाले ज़्यादातर ग़ैर मुसलमान हैं.

दूसरी ओर गुंटूर में ही लाल बहादुर शास्त्री के नाम का 'माया बाज़ार' भी है, जहां मुसलमानों के ही कारोबारी संस्थान मौजूद हैं.भारत की आज़ादी की लड़ाई में मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका के बारे में तो सब जानते हैं. पेशे से वकील रहे जिन्ना ने सबसे पहले कांग्रेस के नेतृत्व में इस आंदोलन में भाग लिया था. लेकिन बाद में कांग्रेस से नाराज़ होकर उन्होंने मुस्लिम लीग की स्थापना की जिन्ना लंदन में कुछ वक़्त तक वकालत करने के बाद 1934 में भारत लौट आए थे. उसके बाद उन्होंने मुस्लिम लीग के नेतृत्व में एक अलग देश बनाने की मुहिम चलाई.एसएम लालजन बाशा 1942 में गुंटूर के विधायक थे. वे कुछ साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मारे गए तेलुगू देशम पार्टी के नेता लालजन बाशा के दादा थे. उन्होंने यूनाइटेड मद्रास प्रेसीडेंसी में गुंटूर का दो बार प्रतिनिधित्व किया था.

आज गुंटूर में जो लालपेटा है, उसका नाम लालजन बाशा के नाम पर ही पड़ा है. लालजन बाशा ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब 'भारत छोड़ो आंदोलन' चल रहा था, तब गुंटूर में मोहम्मद अली जिन्ना की एक बड़ी रैली करने की कोशिश की थी. उस रैली के मुख्य वक्ता के रूप में जिन्ना को बुलाया गया था.मोहम्मद अली जिन्ना को न्योता देने गुंटूर के कई प्रतिनिधि बंबई गए थे. उनकी मंज़ूरी मिलने के बाद गुंटूर में जिन्ना के भव्य स्वागत के इंतज़ाम किए गए थे.

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आज जहां जिन्ना टावर है, उस जगह पर गुंटूर ज़िले के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ बैठक की तैयारी की गई. हालांकि आख़िरी वक़्त में जिन्ना ने कहा कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते.जिन्ना के न आने पर उनकी जगह पर जिन्ना के क़रीबी और भरोसेमंद लियाक़त अली खान इस बैठक में शामिल हुए. उपलब्ध रिकॉर्डों के मुताबिक़, उस बैठक में कोंडा वेंकटापैया पंतुलु, काशीनाधुनी नागेश्वर राव, उन्नवा लक्ष्मीनारायण और कल्लूरी चंद्रमौली सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया