उत्तराखंड के बहादुर से कांपता था चीन-पाकिस्तान।

देश के लाल की हुई बेसुध मौत
 
सीडीएस जनरल बिपिन रावत
नही रहे विपिन रावत, जनरल विपिन रावत, राजस्थान, 

विधाता की लिखा भला झूठ कैसे हो सकता है. परमात्मा के हाथों के लिखे को काटने की कुव्वत अगर किसी इंसान की होती तो फिर भला, भगवान राम ही, पिता दशरथ को पुत्र वियोग-विछोह में तड़प-तड़प कर मरने से ही न बचा लेते. मतलब विधाता ने भले ही हर ‘कमांड’ इंसान के हवाले हंसते-हंसते कर दी मगर उसने जन्म-मरण, यश-अपयश और हानि-लाभ की बागडोर खुद के ही हाथों में रखी दरअसल यह सब हम इसलिए कह रहे है क्योकि बेरहम वक्त के हाथों से बंधी क्रूर मौत ने जब हिंदुस्तान से ही नहीं बल्कि इस खूबसूरत सी दिखाई देने वाली मायावी इंसानी दुनिया से एक काबिल-ए-तारीफ इंसान को छीन लिया....जिसका नाम था बिपिन रावत.....वही पहाड़ के लाल बिपिन रावत जिनके पांवों की धमकदार चाल अक्सर बिना किसी से कुछ बोले उनकी जिंदादिली की तारीफ कर देते है तो आइए जानते है बिपिन रावत के बारे में 

 उत्तराखण्ड सी पाक दामन देवभूमि के पौढ़ी गढ़वाल जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे बीते कल के बालक बिपिन रावत ने फौज की वर्दी में दुश्मनों के जेहन में दहशत का जो आलम पैदा किया था. उसके उस खौफ से सबसे ज्यादा बदन में अगर किसी के सिहरन होती थी तो वो थे हिंदुस्तान के दो ही कट्टर दुश्मन देश. पहला ड्रैगन के नाम से जमाने में कुख्यात चीन और दूसरा आतंकवाद की यूनिवर्सिटी और आतंकवादियों को जन्म देने वाला पाकिस्तान. भारतीय फौज के ऐसे काबिल रणनीतिकार सीडीएस जनरल बिपिन रावत 8 दिसंबर 2021 यानि बुधवार को तमिलनाडू राज्य के नीलगिरी इलाके के जंगलों में हुए हेलीकॉप्टर हादसे में आकाल मौत की गोद में सो गए. वो बिपिन रावत जिन्हें हिंदुस्तानी हुकूमत ने उन्हीं की काबिलियत के भरोसे पर उन्हें देश के सर्वोच्च 5 स्टार रैंक के पहले चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ के पद पर बैठाया था. 

जनरल रावत हिंदुस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेन्स थे. या यूं कहें कि हिंदुस्तान की मौजूदा हुकूमत ने पहली बार चीफ ऑफ डिफेन्स जैसा और भारतीय सेनाओं के तीनों अंगों में सबसे ‘पावरफुल’ पद जनरल बिपिन रावत की काबिलियत को ध्यान में रखकर ही सृजित किया था तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी. उन्हें सीडीएस चुनने से पहले से ही हिंदुस्तानी हुकूमत जानती थी कि जन्मजात और खानदानी रणबांकुरे लाल, जनरल बिपिन रावत की रग-रग में हिंदुस्तानी फौज की बहादुरी भरी हुई है. ऐसी काबिलियतों से भरे-पूरे सीडीएस और पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत दुश्मन की हेकड़ी निकालने में माहिर थे. एक महीने पहले ही उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया था, जिस पर खुद को ड्रैगन और दुनिया की तमाम परमाणु ताकतों में शुमार कराने के लिए लार टपकाते चीन की हालत खराब हो गई थी. बिना गोली-बंदूक, बम चलाए एक छोटे से बयान से ही बिपिन रावत ने चीन के हुक्मरानों में बौखलाहट जगा दी थी. 

crossorigin="anonymous">

सोचिए ऐसे बहादुर बिपिन रावत का आमना-सामना जंग-ए-मैदान में भला अतीत में कब किसने चाहा होगा और अगर मुकाबला हुआ भी होगा तो कहने-बताने-लिखने की जरुरत नहीं कि, दुश्मन की हकीकत का आलम किस हद का बदतर रहा होगा. ऐसी फौलादी ताकत के मालिक भारत के इस लाल को, बेरहम वक्त के हाथों की कठपुतली बनी ‘क्रूर मौत’ धोखे से दबे पांव तमिलनाडू के वीरान-बियाबान जंगलों में ले गई. सही बात है कि कभी किसी इंसान के आने जाने से जमाना या दुनिया नहीं रुकती. वक्त के साथ सब कुछ बनता बिगड़ता चलता रहता है. आज मिले जख्म वक्त के साथ भर जाते हैं. मगर पहाड़ के बिपिन रावत से जांबांज और उनकी अर्धांगिनी पत्नी मधुलिका रावत की दुनिया से ऐसी बेरहम रुखसती पर तो सच में दुनिया ठहर गई है. इस क्षति के बाद भारतीय सेनाओं के तीनों अंगों, हिंदुस्तानी हुक्मरानों के दिलों पर जो गुजर रही होगी वे तो वो ही जानते होंगे. इस हादसे की खबर ने बुधवार को पूरे हिंदुस्तान के बाशिंदों की आंखों के आगे धुंधलापन और कानों में कुछ वक्त के लिए ही सही, मगर बहरापन जरूर पैदा कर दिया. इसमें कोई शक नहीं, चलते-फिरते हिंदुस्तानियों के बदन एक अदद इस खौफनाक खबर ने ‘बेदम-बेजान’ से कर दिए. सब अपना-अपना कामधाम कर रहे थे मगर बेमन और निर्जीव-निढाल थके हारे सिपाहियों की सी हालत में. जनरल बिपिन रावत एक बहादुर सिपाही तो थे ही. हिंदुस्तान से विशाल लोकतांत्रिक देश में इतने बड़े ओहदे पर बैठने के बाद भी वे सबसे पहले हिंदुस्तानियों के हर-दिल अजीज भी थे. यह कुव्वत भी जनरल बिपिन रावत से ही बहादुर रणबांकुरे की थी कि, देश की ओर जब-जब दुश्मन ने नजर उठाने की बात छोड़िए करवट लेकर सोने की भी कोशिश की तो हिंदुस्तानी हुक्मरानों की जुबानें खुल पाने से पहले ही इस बहादुर फौजी ने दुश्मन को नींद से हर बार चौंकाकर जागने को मजबूर कर दिया.  

बीती 13 नवंबर 2021 को ही CDS बिपिन रावत ने कहा था, “भारत की सिक्योरिटी के लिए चीन सबसे बड़ा खतरा बन चुका है. पिछले साल चीन से लगते सीमावर्ती इलाकों में लाखों जवानों और हथियारों की तैनाती की गई थी. मतलब भले ही बिपिन रावत ने चीन के सीने पर गोलियां दागने से किसी कदम की घोषणा न की हो, मगर हिंदुस्तान के कट्टर दुश्मन चीन के सीने पर, जनरल रावत का वो बयान किसी पैटनटैंक से निकले भारी-भरकम ‘बम’ सा जाकर गिरा. सोचिए ऐसे किसी बहादुर की इस इंसानी दुनिया ऐसी बेरहम विदाई से भला किसकी आंख नम नहीं होगी. उत्तराखण्ड के पौढ़ी गढ़वाल जिलांतर्गत एक गांव में 16 मार्च 1958 को बिपिन रावत का जन्म हुआ था. उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत हिंदुस्तानी फौज में लेफ्टिनेंट जनरल थे. जिन्हें फौज और आमजन हमेशा एलएस रावत के नाम से ही जानते-पहचानते रहे. जनरल बिपिन रावत ने St Edward’s School शिमला में भी पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय सैन्य अकादमी की परीक्षा पास करके सेना ज्वाइन की. हिंदुस्तान के लाल और हिंदुस्तानी फौज के ऐसे जांबाज सिपाही बिपिन रावत को इस तरह दबे पांव आई बे-आवाज ‘मौत’ द्वारा, धोखे से बियाबान जंगलों के सन्नाटे में ले जाकर ‘हरा’ देना. सोचो आज भला जमाने में किसे और क्यों नहीं खलेगा? वो रणबांकुरा जिसने हिंदुस्तानी फौज से रिटायर होने के बाद भी खुद को कभी ‘बूढ़ा’ करार नहीं होने दिया. वो फिर से देश की सीमाओं की रक्षा की खातिर खुद को किसी 20 साल के हिंदुस्तानी नौजवान सा बनाकर जा अड़ा था दुश्मन की छाती के सामने. हादसे के वक्त Mi-17 V5 हेलिकॉप्टर में जनरल बिपिन रावत के साथ पत्नी मधुलिका रावत के अलावा 12 लोग और थे. ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांस नायक विवेक कुमार, लांंस नायक बी. साई तेजा और हवलदार सतपाल सवार थे. बुधवार की शाम आते-आते हादसे में इन सभी के न रहने की मनहूस खबर भी दिन-ढले आ गई. 

बहादुर पति जनरल बिपिन रावत के साथ ही जिंदगी की अंतिम सांस लेने वाली मधुलिका रावत ने अग्नि के सामने लिए सातों वचन निभाए. अगर वे अपने किए वायदों पर खरी न उतरी होतीं तो संभव था कि बुधवार को हुए हादसे के वक्त वे शायद किन्हीं कारणों के चलते पति के साथ ही उस सफर पर न निकलीं होतीं जो उनकी जिंदगी का अंतिम सफर साबित हुआ. मधुलिका मूल रूप से मध्य प्रदेश के शहडोल की रहने वाली थीं. उनके पिता राजनेता मृगेंद्र सिंह थे. बिपिन रावत और मधुलिका रावत के कृतिका सहित दो बेटियां हैं. इस दंपत्ति की खासियत थी कि उन्होंने दोनो ही बेटियों को अपनी फौजी जिंदगी के दायरे यानी ‘लाइमलाइट’ से हमेशा दूर ही रखा. 63 साल के जीवन में जनरल रावत की उपलब्धियों को उंगलियों पर गिनना सरासर बेईमानी ही होगा. हां, सीमापार पाकिस्तान के सीने पर चढ़कर अंजाम दी गई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के पीछे असली दिमाग तो सिर्फ और सिर्फ जनरल बिपिन रावत का ही माना गया.  1 जनवरी सन् 2017 को नरेंद्र मोदी की हुकूमत ने उन्हें भारतीय थल सेना की बागडोर बहैसियत ‘थल सेनाध्यक्ष’ सौंपी थी. उसके बाद जनरल बिपिन रावत इंडियन आर्मी चीफ से 31 दिसंबर 2019 को रिटायर होने के बाद देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने थे. दुश्मनों के दुश्मन और अपनों के किसी ‘मसीहा’ से ऐसे बहादुर-बेखौफ बिपिन रावत से सिपाही के जाने पर ‘रोना’ भले ही गुनाह हो सकता है. मगर वक्त ने ऐसे बहादुर को दबे पांव धोखे से जो मौत मंजिल के करीब यानी चंद फर्लांग दूरी पर ही बियाबान जंगल में दी, उसे भी तो लालची इंसानी फितरत या मन आसानी से कबूल करने का गुनाह करने को राजी नहीं है. मगर फिर वही बात कि विधाता की लिखी कौन टाल सका? ऐसे में बेईमान इंसानी मन समझाने के लिए याद आना या फिर सतयुग की रामायण और अन्य तमाम ग्रंथों में उल्लिखित एक घटना का उल्लेख करना लाजिमी है. कलियुग की इस मारामारी और आपाधापी वाली जिंदगी में बिपिन रावत से बहादुर को खोने से हासिल ज़ख्मों को मरहम लगाने की खातिर.