क्या मोदी के बाद बिखर जाएगी बीजेपी.?

 
मोदी

 एक तरफ कांग्रेस का जनाधार घट रहा है तो दूसरी तरफ उसे भाजपा के सबसे बड़े चेहरे का विकल्प ढूंढे नहीं मिल रहा। कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के करिश्माई व्यक्तित्व को चुनौती दे सके। ऐसे में कांग्रेस बिखरती दिख रही है। पार्टी हाईकमान के विश्वासपात्र और करीबी समझे जाने वाले भाजपाई हो रहे हैं।

हार पर हार मिलने से पार्टी में बेचैनी और असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस की हालत पतली कर दी। पंजाब में सरकार गई और पार्टी के बचे-खुचे कार्यकर्ताओं का हौसला पस्त होता जा रहा है। ऐसे में पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन (Congress Leadership Crisis) की मांग उठने लगी है।

G-23 नेताओं का ग्रुप ऐक्टिव हो चुका है। बैठकें हुईं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक बात पहुंची लेकिन हालात फिलहाल जस के तस हैं। हां, चौतरफा नकारात्मकता भरे माहौल में पार्टी के दिग्गज नेता वीरप्पा मोइली ने कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश जरूर की है। उन्होंने यह कहकर नेताओं में जोश भरने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी का टिक पाना मुश्किल है। तो क्या मुख्य विपक्षी दल ने मोदी को वॉकओवर दे दिया है?

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कांग्रेस इतनी कमजोर क्यों है?
सबसे पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस की हालत ऐसी क्यों है? कारण तो कई हो सकते हैं पर सबसे बड़ी वजह जनता से कनेक्शन टूटना है। याद कीजिए यूपीए-1 और 2 के समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का दौर और फिर 2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनते हैं। पहले एक दिग्गज अर्थशास्त्री के हाथों में देश की कमान थी तो बाद में करीब 15 साल तक मुख्यमंत्री का अनुभव रखने वाले कुशल वक्ता और जनता से खुद को जोड़ने की कला के महारथी ने देश को आगे बढ़ाया। सरकारें तो अपना काम करती ही हैं, लेकिन उस काम को जनता के बीच लेकर जाना भी बड़ी बात है। चुनावी रैलियों, सरकारी कार्यक्रमों से इतर प्रधानमंत्री मोदी ने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' शुरू कर घर-घर तक अपनी पहुंच बनाई। दूसरी तरफ कांग्रेस के बुजुर्ग नेता दिल्ली की सीमाओं में बंधे रहे। वे सरकार की गलतियों और पांच साल बाद चुनाव आने का इंतजार करते रहे और मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 'सबका साथ सबका विकास....' की भावना के साथ योजनाओं पर काम करना जारी रखा। 370, राम मंदिर जैसे बड़े समाधानों ने भाजपा की लोकप्रियता को शिखर पर पहुंचा दिया। भाजपा ने हर उस चुनावी चक्रव्यूह को तोड़ने में सफलता हासिल की थी, जिस पर पहले चुनाव जीते जाते थे। चाहे वह जातिगत समीकरण हो या क्षेत्रीयता, मोदी के सत्ता में आने के बाद भाजपा ने सबको साथ लेकर चलने का नैरेटिव तैयार किया। इससे जनता में एकजुटता का संदेश गया और ध्रुवीकरण की राजनीति के खिलाफ कंसोलिडेशन बड़ा फैक्टर बनकर उभरा। कांग्रेस इसे भांपने में चूक करती गई।

हाल में 'द कश्मीर फाइल्स' का उदाहरण ही ले लीजिए। जब भाजपा समेत पूरा देश कश्मीरी पंडितों के दुख को महसूस करता दिखा तो कांग्रेस के कुछ ट्विटर हैंडल्स से किए गए ट्वीट उसके लिए असहज स्थिति खड़ी करते दिखे।

मोइली का 'सब चंगा सी' माहौल बनाने की कोशिश
ऐसे समय में जब जी-23 की बैठक के बाद कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग जोर पकड़ रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि कांग्रेस के नेताओं को घबराना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी का टिक पाना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि बीजेपी हमेशा रहने वाली नहीं है। यह मोदी के बाद राजनीति की उथल-पुथल बर्दाश्त नहीं कर सकेगी। मोइली की बात से साफ है कि कांग्रेस पार्टी मान चुकी है कि फिलहाल मोदी की छवि को हिला पाना मुश्किल है। तो क्या पार्टी ने हथियार डाल दिए हैं और अब मोदी के बाद की भाजपा का इंतजार हो रहा है?

दिलचस्प यह है कि पिछले 50 वर्षों में सिर्फ 2 बार ही CWC का चुनाव हुआ। दोनों बार नेहरू और गांधी परिवार से बाहर का शख्स सत्ता में था। 1992 में कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव ने इलेक्शन कराए थे। दूसरी बार 1997 में सीताराम केसरी के समय चुनाव हुए थे। 1998 में सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद सीडब्लूसी सदस्य नामित ही होते रहे हैं।

हकीकत यह है कि चुनाव कार्यकर्ताओं के दम पर जीते जाते हैं। एक समय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद थे लेकिन संघ की मजबूती के बाद सत्ता में आई भाजपा ने ऐसा काडर तैयार किया जो न सिर्फ उसे चुनावों में जीत के लिए मददगार साबित हुआ बल्कि जनता भी विचारधारा के साथ जुड़ती गई। मोइली भले ही मोदी के बाद की भाजपा के कमजोर होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं लेकिन शायद वह भूल गए हैं कि भाजपा ने दूसरी पंक्ति ही नहीं, तीसरी पंक्ति के नेताओं को भी तैयार कर दिया है। ऐसे में सिर्फ यह मानकर बैठने से कांग्रेस की नैया पार होने वाली नहीं है कि मोदी के बाद भाजपा बिखर जाएगी? 1998 में ममता बनर्जी, 1999 में शरद पवार, 2014 के बाद जगदंबिका पाल से लेकर जितिन प्रसाद तक अगर इस पतन को रोकना है तो कांग्रेस नेतृत्व को बदलाव के लिए तैयार होना पड़ेगा।