राष्ट्रपति चुनाव की रेस में एनडीए आगे, विपक्ष बना रहा अलग रणनीति,राज्यसभा में भाजपा की घटी संख्या

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ने लगी है। 18 जुलाई को मतदान और 21 जुलाई को काउंटिंग का ऐलान होते ही मंथन शुरू हो गया। सत्तारूढ़ भाजपा की अगुआई वाले एनडीए के पास कुल 10.79 लाख वोटों के आधे से थोड़ा कम यानी 5,26,420 है। उसे वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के सहयोग की दरकार है। पीएम नरेंद्र मोदी को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर अंतिम फैसला लेना है लेकिन इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग की भगवा दल को जरूरत होगी।
अभी इन दोनों पार्टियों ने कोई संकेत तो नहीं दिए लेकिन पिछले दिनों वाईएसआर और ओडिशा के सीएम, दोनों नेताओं ने दिल्ली आकर मोदी से मुलाकात की थी। दोनों ने 2017 में रामनाथ कोविंद को अपना सपोर्ट दिया था। फिलहाल एनडीए को करीब 13,000 वोट कम पड़ रहे हैं। बीजेडी के पास 31 हजार से ज्यादा वोट हैं और वायएसआरसीपी (YSRCP) के पास 43,000 से ज्यादा वोट हैं। ऐसे में इनमें से किसी एक का समर्थन भी एनडीए को निर्णायक स्थिति में पहुंचा देगा। विपक्ष की तुलना में भाजपा गठबंधन की स्थिति काफी मजबूत है।
एनडीए के विधायक वोटों की बात करें तो यह 2.17 लाख और सांसद वोट 3.09 लाख हैं। इसमें भाजपा के पास सबसे ज्यादा 1.85 लाख विधायक वोट और 2.74 सांसद वोट हैं इस लिहाज से कुल वोट 4.59 लाख से ज्यादा हो जाते हैं। वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग होता है।
crossorigin="anonymous">राष्ट्रपति चुनाव में नंबर गेम समझिए
भाजपा की सीटें लोकसभा में काफी अधिक हैं, हालांकि क्षेत्रीय पार्टियों के साथ तालमेल बदला है और कई राज्यों की विधानसभाओं में स्थिति कमजोर हुई है, जिस कारण एनडीए को क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेना होगा। इस दायरे में जगन मोहन की वायएसआरसीपी और बीजद (BJD) आते हैं। अन्य सहयोगी एआईएडीएमके (AIADMK) के सदस्य तमिलनाडु विधानसभा में घटे हैं। भाजपा ने यूपी चुनाव में फिर से सत्ता हासिल तो कर ली लेकिन उसकी संख्या घटी है। उसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तुलनात्मक रूप से भी नुकसान हुआ है।
हालांकि विपक्ष की तुलना में एनडीए बेहतर स्थिति में है और उसके पास बढ़त है। विपक्ष को अभी सर्व सहमति के साथ उम्मीदवार तय करना है। विपक्ष में एकजुटता नहीं दिख रही है। टीएमसी, टीआरएस और आप जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के खिलाफ एक गैर-कांग्रेसी मोर्चे पर जोर दे रही हैं। एनडीए के रणनीतिकार आश्वस्त हैं कि क्षेत्रीय दल विपक्षी खेमे के साथ एकजुट होने के पक्ष में नहीं हैं।
इसी साल अप्रैल में उच्च सदन में 100 के आंकड़े पर पहुंचने वाली भाजपा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा की 57 सीटों के लिए हाल में हुए द्विवार्षिक चुनावों के बाद 95 से घटकर 91 पर आ गई। 57 सदस्यों को मिलाकर वर्तमान में उच्च सदन के कुल 232 सदस्यों में भाजपा के 95 सदस्य हैं। सेवानिवृत्त हो रहे सदस्यों में भाजपा के 26 सदस्य शामिल हैं जबकि इस द्विवार्षिक चुनाव में उसके 22 सदस्यों ने जीत दर्ज की। इस प्रकार उसे चार सीटों का नुकसान हुआ है। निर्वाचित सदस्यों के शपथ लेने के बाद भाजपा के सदस्यों की संख्या 95 से घटकर 91 रह जाएगी। यानी फिर से 100 के आंकड़े तक पहुंचने के लिए भाजपा को अभी और इंतजार करना पड़ेगा।