पत्नी की प्यास बुझाने के लिए मध्यप्रदेश का हरि सिंह बना दशरथ मांझी

दुनिया में ऐसे कई लोग है जो पत्नी की याद में असंभव को संभव कर देते है। बिहार के दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की याद में पहाड़ खोदकर रास्ता निकाल दिया तो सीधी जिले के हरि सिंह ने दो बूंद पानी के लिए पहाड़ खोद दिया है। काफी मेहनत के बाद उन्होंने पहाड़ खोदकर उसमें से पानी निकाला है। हरि सिंह की मेहनत की चर्चा पूरे प्रदेश में है। उसी पहाड़ से पानी निकाल कर हरि सिंह ने अपनी पत्नी को पानी पिलाया है।
दरअसल, सीधी जिले में आज ऐसे बहुत सारे गांव है जहां पर मूलभूत सुविधाओ से लोग वंचित है। बड़े ही धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है लेकिन जब इस प्रकार का मामला निकल कर सामने आता है तो जनप्रतनिधियों के मुंह में दही जम जाता है। सीधी का यह मामला जब सामने आया तो कुछ भी बोलने से वे लोग कतराते रहे है। यह पूरा मामला सीधी जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर जनपद पंचायत सिहावल के ग्राम पंचायत बरबंधा में आया है। जहां पत्नी की विवशता को देखकर पति ने पहाड़ का सीना चीर कर कुआं खोद डाला है। तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में लोग अभी भी पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है।
40 वर्षीय हरि सिंह ने बताया कि पत्नी सियावती की परेशानी को लेकर मैं काफी चिंतित था। पत्नी को दो किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था। यह परेशानी हमसे देखी नही गई। इसकी वजह से गांव में ही हरि सिंह ने चट्टानों से घिरे पहाड़ को खोद कर कुआं खोद डाला है।
हरि सिंह ने बताया कि थोड़ा बहुत पानी मिल गया है लेकिन जब तक समुचित उपयोग के लिए पानी नही मिल जाता , तब तक ये कुआं खोदने का कार्य जारी रहेगा। इसके लिए चाहे जो करना पड़े । उन्होंने बताया कुआं खोदने का कार्य पिछले तीन साल से जारी है। उसके बाद जाकर थोड़ा बहुत पानी मिल गया है। अभी कुआं खुदाई का कार्य जारी रहेगा। हरि सिंह के साथ तीन साल से उसकी पत्नी सियावती, दो बच्चे और एक बच्ची मदद में लगी है। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद पत्नी की परेशानी कुछ हद तक दूर हो गई है।
हरि सिंह ने यह भी बताया कि शुरू में यह कार्य बहुत कठिन लग रहा था क्योंकि पूरा का पूरा चट्टानी पत्थर खोदना था। मिट्टी की परत नहीं थी। ऐसे में काफी कठनाइयों का सामना करना पड़ा। किन्तु मन मारकर बैठने की बजाय मन में हठधर्मिता को जाग्रत किया। संकल्प लिया कि इस दुनिया में कोई भी कार्य असंम्भव नहीं है। मैं यहां कुआं खोदकर ही सांस लूंगा।