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सज्जन कुमार मौत की सजा का हकदार: प्रो. सरचंद सिंह ख्याला।


कांग्रेस पार्टी ने न केवल निर्दोष सिखों के हत्यारों को बचाया बल्कि उन्हें सरकार और पार्टी में महत्वपूर्ण पदों से भी पुरस्कृत किया।

अमृतसर, (विक्रम शर्मा ) पंजाब भाजपा प्रवक्ता एवं सिख विचारक प्रो. सरचंद सिंह ख्याला ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के एक मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट द्वारा पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को सुनाई गई उम्रकैद की सजा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि दोषी को मौत की सजा मिलनी चाहिए थी। उन्होंने दिल्ली सरकार से सज्जन कुमार को मौत की सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट में अगला कदम उठाने की अपील की।
प्रो सरचांद सिंह ने कहा कि सज्जन कुमार जोकि 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली कैंट की पालम कॉलोनी में 5 सिखों की हत्या के बाद गुरुद्वारा जलाने के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, अब दिल्ली के सरस्वती विहार में जसवंत सिंह और उसके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या से संबंधित मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि वह सिख हत्याकांड का मास्टरमाइंड था, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उसे न केवल राजनीतिक संरक्षण देकर बचाया बल्कि निर्दोष सिखों की हत्या करने के लिए उसे सरकार और पार्टी में महत्वपूर्ण पदों से भी पुरस्कृत किया।
प्रो सरचांद सिंह ने कहा कि सितंबर 2023 में राउज एवेन्यू कोर्ट ने दिल्ली के सुल्तानपुरी में 3 सिखों की हत्या मामले में सज्जन कुमार को बरी करने और, साथ ही 1984 के सिख दंगों के मामलों में भी दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए गए लोगों के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की जानी चाहिए और मामलों को गंभीरता से लड़ा जाना चाहिए। पिछली केजरीवाल सरकार ने कई मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसलों को चुनौती नहीं दी थी। कुछ मामलों में केवल याचिकाएं दायर की गईं, लेकिन मामलों को गंभीरता से नहीं लड़ा गया। न ही इन मामलों के लिए किसी वरिष्ठ वकील की नियुक्ति की गई। जिससे मामला गैर-गंभीर, ईमानदारी से रहित और संदिग्ध प्रतीत होता है। उन्होंने मांग की कि दिल्ली भाजपा सरकार सिख नरसंहार के मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए गए लोगों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दिल्ली पुलिस द्वारा बरती गई गंभीरता की कमी के खिलाफ ठोस एवं आवश्यक कदम उठाए तथा केवल औपचारिक खानापूर्ति के बजाय न्याय के लिए मामलों की मजबूत पैरवी करे तथा कहा कि सिख नरसंहार के दोषियों को सजा देने में बरती गई ढिलाई न केवल सिखों के दिलों को ठेस पहुंचाएगी बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था का भी खुला मजाक उड़ाएगी।
प्रो सरचंद सिंह ने कहा कि 40 वर्ष पूर्व 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद कांग्रेस सरकार की घृणित विचारधारा के तहत हुई हिंसा और सिख नरसंहार के दौरान सिख समुदाय को जो दर्द सहना पड़ा, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आजादी के बाद देश की बागडोर संभालते समय कांग्रेस ने राजनीतिक स्वार्थ के चलते पंजाब और सिखों के प्रति गलत फैसले लिए। हिंदू और सिख समुदायों के बीच नफरत पैदा करने के अलावा 1984 में मानवता और सभ्यता के विनाश की एक ऐसी कहानी लिखी गई, जिसके बारे में हिंदुओं और सिखों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। नवंबर 1984 का पहला सप्ताह दिल्ली सहित पूरे देश में एक भयावह घटना थी, जहां सिख होने का मतलब मौत था। जिस सिख समुदाय ने भारत के साथ अपनी नियति को जोड़ा, देश की आजादी और पुनर्निर्माण में सबसे ज्यादा खून बहाया, उसने कभी नहीं सोचा था कि 37 साल बाद उसे उसी देश में अपमानित होने का दर्द सहना पड़ेगा। और उनके निर्दोष लोगों को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया जाएगा क्योंकि उन्होंने पगड़ी और दाढ़ी रखी थी? दिल्ली समेत देश के 18 राज्यों के कई शहरों में 7000 से ज्यादा निर्दोष सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके मार दिया गया, सिखों को अमानवीय तरीके से निशाना बनाया गया, उन्हें जिंदा पेट्रोल डालकर जला दिया गया और उनके गले में टायर डालकर आग लगा दी गई, और जिस तरह से दिनदहाड़े बेटियों और बहनों को अपमानित किया गया वह दिल दहला देने वाला था। सिखों की करोड़ों रुपए की संपत्ति लूट ली गई और जला दी गई। पूरी व्यवस्था सिखों के खिलाफ थी।सरकार, प्रशासन और पुलिस सिर्फ मूकदर्शक ही नहीं बनी रही, बल्कि हत्यारों की मदद करती रही और सिखों के घरों की पहचान करती रही। राजीव गांधी के इस कथन, “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है,” ने हत्यारों को प्रोत्साहित किया। यह देश की सत्तारूढ़ पार्टी के तत्वावधान में सिखों की योजनाबद्ध सामूहिक हत्या थी। बाद में 30 वर्षों में मारवाह समिति से लेकर नानावटी आयोग तक 10 जांच आयोग गठित किये गये। नानावटी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 1984 के दंगों के संबंध में दिल्ली में कुल 587 एफआईआर दर्ज की गईं। 2,733 लोग मारे जाने का खुलासा होया। कुल मामलों में से पुलिस ने लगभग 240 मामले बंद कर दिए तथा लगभग 250 मामलों में आरोपी बरी हो गए।नानावटी आयोग ने दिनदहाड़े हजारों निर्दोष लोगों की हत्या के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार और कांग्रेस नेताओं की कड़ी आलोचना की। लेकिन कांग्रेस सरकार ने न केवल आरोपी कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया, बल्कि उन्हें क्लीन चिट भी दे दी। पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कते हुए, नरसंहार को अंजाम देने वाले एच.के.एल. भगत, कमल नाथ, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार जैसे कांग्रेस नेताओं को उच्च सरकारी पदों से सम्मानित किया गया और वे सत्ता का सुख भोगते रहे।

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