उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व प्रमुख ने अपनी नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए एक दावा किया है, जो सबकी नींद उड़ा सकता है
उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के चयन को लेकर सियासत और बहस गर्माई हुई है, खासकर योगी सरकार द्वारा हाल ही में कैबिनेट में किए गए फैसले के बाद। इसी बीच, यूपी के पूर्व डीजीपी और वरिष्ठ हाई कोर्ट अधिवक्ता सुलखान सिंह का बयान चर्चा का केंद्र बन गया है। सुलखान सिंह ने दावा किया है कि उनकी खुद की नियुक्ति भी यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) के पैनल से नहीं हुई थी, बल्कि वह सीधे मुख्यमंत्री के फैसले से डीजीपी बने थे
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने एबीपी लाइव से बातचीत में कहा कि जब वह डीजीपी बने, तब भी यूपीएससी पैनल का कोई हस्तक्षेप नहीं था। उन्होंने बताया कि अखिलेश यादव के कार्यकाल में भी पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति यूपीएससी के पैनल से नहीं होती थी और मुख्यमंत्री अपनी मर्जी से डीजीपी नियुक्त करते थे। सुलखान सिंह ने यह भी कहा कि उनके पूर्ववर्ती डीजीपी जगमोहन यादव को भी यूपीएससी पैनल को दरकिनार कर 14 वरिष्ठ अधिकारियों को पीछे छोड़कर नियुक्त किया गया था
हालांकि, सुलखान सिंह ने यह स्वीकार किया कि जब वह डीजीपी बने तो वह सीनियर-most अधिकारी थे और अगर उनकी नियुक्ति यूपीएससी पैनल से होती तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती। उन्होंने यह भी कहा कि लंबे समय बाद, 2020 में, यूपी सरकार ने हितेश चंद्र अवस्थी को सही तरीके से यूपीएससी पैनल के जरिए डीजीपी नियुक्त किया
नई नियमावली के अनुसार, यूपी सरकार अब पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिए एक नई प्रक्रिया लागू करेगी। इस नियमावली के तहत, डीजीपी चयन के लिए एक समिति का गठन होगा, जिसमें हाई कोर्ट के एक रिटायर न्यायाधीश, यूपीएससी के प्रतिनिधि, प्रदेश के मुख्य सचिव, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और राज्य के सेवानिवृत्त डीजीपी शामिल होंगे
पुरानी नियमावली के तहत, राज्य सरकार पुलिस सेवा में 30 साल पूरा कर चुके अधिकारियों के नाम यूपीएससी को भेजती थी, और फिर यूपीएससी उन नामों पर विचार कर सरकार को तीन नामों का पैनल भेजती थी, जिसके बाद सरकार किसी एक को डीजीपी नियुक्त करती थी
इस नए फैसले के बाद, अब यूपी सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और कड़ी हो गई है