लेख-विचार
या रब

तमाशा-ए-जिंदगी खतम हो या रब
हयात की रूखसती में सनम हो या रब
ताउम्र ज़हर पीते रहे बेरूखी की हम
दिले-अफसुर्दा में अब ना ग़म हो या रब
सरेआम कत्ल देख गुजरते हैं चुपचाप
बेदर्द यूं भी ना ये आलम हो या रब
सऊर जिनको नहीं एक, तंज़ वो भी दे रहे
उन्हें चालाकियों का यूं न भरम हो या रब
रोज रेल पलटती है और पूल ढह रही
सरकारों की ना बेगैरत धरम हो या रब
ना भरोसा किसी को अब किसी पर बीना
यकीं वाले दिलों पर करम हो या रब।
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश